*Magnify*
SPONSORED LINKS
Printed from https://p15.writing.com/main/view_item/item_id/2152443---
Printer Friendly Page Tell A Friend
No ratings.
Rated: E · Poetry · Experience · #2152443
Stars and Exoplanets
तारे इतने सारे!


तारे इतने सारे!
आसमान को लगते प्यारे
आकाशगंगा तुमसे जग-मग है
ओ! मेरे बचपन के सहारे |

बचपन में किस्से सुनता था
प्रश्नों का मेला लगता था
माँ की लोरी जब न भाती
तुम्हें देख-देख सोता था |

दिखते जो पर नहीं हो वैसे
आपस में होली खेले हो जैसे
दूर से लगता अकेले हो तुम
अशंख्य ग्रहों से घिरे हो तुम |

तुम्हारी ऊर्जा का तो जवाब नहीं
तुम बिन जीवन का प्रसार नही
तुमसे ही ब्रह्माण्ड बसे हैं
हम सब तो तुमसे ही बने हैं |

इस धरती पर ही जीवन सारा है?
ऐसा नहीं कि ब्रह्माण्ड सिर्फ हमारा है
बचपन से ये मान रहा हूँ
अकेले नहीं हम, अब जान रहा हूँ |

तुम तो खुद मे ही सागर हो
ब्रह्माण्ड के सागर में गागर हो
हम उस गागर में एक कड़ हैं
पर हमें विज्ञान का अनुसरण है |

बस विज्ञान से कदम मिलाना है
कई रहस्यों से पर्दा उठाना है
कहीं और जीवन है? खोज रहा हूँ
इस जीवन को सफल बनाना है ॥

© Copyright 2018 Shivom (shivomnasa at Writing.Com). All rights reserved.
Writing.Com, its affiliates and syndicates have been granted non-exclusive rights to display this work.
Log in to Leave Feedback
Username:
Password: <Show>
Not a Member?
Signup right now, for free!
All accounts include:
*Bullet* FREE Email @Writing.Com!
*Bullet* FREE Portfolio Services!
Printed from https://p15.writing.com/main/view_item/item_id/2152443---